Wednesday, December 31, 2008

पुरुषसूक्तम्-१५

सप्तास्यासन्परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन्पुरुषं पशुं॥१५॥

अस्य सांकल्पिकयज्ञस्य गायत्र्यादीनि सप्त च्छंदांसि परिधय आसन्। ऐष्टिकस्याहवनीयस्य त्रयः परिधय उत्तरवेदिकास्त्रय आदित्यश्च सप्तमः परिधिप्रतिनिधिरूपः। अत एवाम्नायते। पुरस्तात्परिदध्यादित्यादित्यो ह्येवोद्यन्पुरस्ताद्रक्षांस्यपहंतीति। तत एत आदित्यसहिताः सप्त परिधयोऽत्र सप्त च्छंदोरूपाः। तथा समिधस्त्रिः सप्त त्रिगुणीकृतसप्तसंख्याका एकविंशतिः कृताः। द्वादश मासाः पंचर्तवस्त्रय इमे लोका असावादित्य एकविंशः। तै.सं. ..१०.३। इति श्रुताः पदार्था एकविंशतिदारुयुक्तेंधनत्वेन भाविताः। यद्यः पुरुषो वैराजोऽस्ति तं पुरुषं देवः प्रजापतिप्राणेंद्रियरूपा यज्ञं तन्वाना मानसं यज्ञं तन्वानाः कुर्वाणाः पशुमबध्नन्। विराट्पुरुषमेव पशुत्वेन भावितवंतः। एतदेवाभिप्रेत्य पूर्वत्र यत्पुरुषेण हविषेत्युक्तं।

गायत्री आदि सात छंद इस सांकल्पिक यज्ञ कीं परिधियाँ हुईं। एष्टिक-आहवनीय की तीन (परिधियाँ), उत्तरवेदिका की तीन एवं सातवाँ सूर्य, यह सात यज्ञपरिधि के प्रतिनिधि रूप में प्रयुक्त हुए। (कहा भी गया है - ‘न पुरस्तात्परिदध्यादित्यादित्यो ह्येवोद्यन्पुरस्ताद्रक्षांस्यपहंतीति’। अतः, स्पष्ट है कि सूर्य सहित यह कुल सात उस यज्ञ कीं छन्द रूपी परिधियाँ थीं।) तथा तीन गुणा सात अर्थात् इक्कीस समिधायें भी कल्पित की गईं। ‘द्वादश मासाः पंचर्तवस्त्रय इमे लोका असावादित्य एकविंशः’ - बारह मास, पाँच ऋतुयें, तीन लोक और इक्कीसवाँ सूर्य। (तै.सं. ५.१.१०.३)। इस प्रकार इक्कीस पदार्थ ईंधन के लिये लकड़ियों के रूप में कल्पित किये गये। जो विराट् पुरुष था, उसे यज्ञ करते हुए, प्रजापति के प्राणेंद्रियरूपी देवताओं ने पशु रूप में बाँधा - अर्थात् विराट् पुरुष को ही पशु रूप में कल्पित किया। यह बात पहले ‘यत्पुरुषेण हविषा’ में भी कही गयी है।
Comments:
नया साल आए बन के उजाला
खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||

नूतन वर्ष मंगलमय हो |
 
Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]





<< Home

This page is powered by Blogger. Isn't yours?

Subscribe to Posts [Atom]