Wednesday, December 24, 2008
पुरुषसूक्तम्-१२
ब्राह्मणोऽस्य मुखामासीद्वाहू राजन्यः कृतः। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥१२॥
इदानीं पूर्वोक्तानां प्रश्नानामुत्तराणि दर्शयति। अस्य प्रजापतेर्ब्राह्मणो ब्राह्मणत्वजातिविशिष्टः पुरुषो मुखमासीत्। मुखादुत्पन्न इत्यर्थः। योऽयं राजन्यः क्षत्रियात्वजातिमान्पुरुस्छा स बाहू कृतः। बाहुत्वेन निष्पादितः। बाहुभ्यामुत्पादित इत्यर्थः। तत्तदानीमस्य प्रजापतेर्यदूरू तद्रूपो वैश्यः संपन्नः। ऊरूभ्यामुत्पन्न इत्यर्थः। तथास्य पद्भ्यां पादाभ्यां शूद्रः शूद्रत्वजातिमान्पुरुषोऽजायत। इयं च मुखादिभ्यो ब्राह्मणादीनामुत्पत्तिर्यजुःसंहितायां सप्तमकांडे स मुखतस्त्रिवृतं निरमिमीत। तै.स. ७.१.१.४। इत्यादौ विस्पष्टाम्नाता। अतः प्रश्नोत्तरे उभे अपि तत्परतयैव योजनीये।
अब पूर्वोक्त प्रश्नों के उत्तर बताये गये हैं। ब्राह्मण जाति का पुरुष प्रजापति का मुख था, अर्थात् मुख से उत्पन्न हुआ। जो क्षत्रिय जाति का पुरुष था, वह पुरुष की बाहुओं से उत्पन्न हुआ। इसके बाद प्रजापति कि जाँघों से वैश्य जाति का पुरुष उत्पन्न हुआ तथा पैरों से शूद्र जाति का पुरुष उत्पन्न हुआ। (प्रजापति के मुख आदि से ब्राह्मण आदि वर्गों की उत्पत्ति यजुर्वेद के सप्तम कांड में भी कही गई है - ‘स मुखतस्त्रिवृतं निरमिमीत।‘ ‘उसने मुख से त्रिवृत (अर्थात् ब्राह्मण) का निर्माण किया’। तै.सं. ७.१.१.४। अतः इन प्रश्नोत्तरों को इसी प्रकार से समझना चाहिये। अर्थात् ब्राह्मण वर्ग का पुरुष का मुख होने से अभिप्राय है कि वह पुरुष के मुख से उत्पन्न हुआ।)
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