Monday, December 22, 2008

पुरुषसूक्तम्-११

यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्य कौ बाहू का उरू पादा उच्येते॥११॥

प्रश्नोत्तररूपेण ब्राह्मणादिसृष्टिं वक्तुं ब्रह्मवादिनां प्रश्ना उच्यंते। प्रजापतेः प्राणरूपा देवा यद्यदा पुरुषं विराड्रूपं व्यदधुः संकल्पेनोत्पादितवंतः तदानीं कतिधा कतिभिः प्रकारैर्व्यकल्पयन्। विविधं कल्पितवंतः। अस्य पुरुषस्य मुखं किमासीत्। कौ बाहू अभूतां। का उरू। कौ पादावुच्येते। प्रथमं सामान्यरूपः प्रश्नः पश्चान्मुखं किमित्यादिना विशेषविषयाः प्रश्नाः।

प्रश्नोत्तर रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि चतुर्वर्ग की सृष्टि बताने के लिये ब्रह्मवादियों के प्रश्न बताये गये हैं। जब प्रजापति के प्राणरूपी देवताओं ने विराट् रूपी पुरुष को उत्पन्न किया तब किस प्रकार से उसे कल्पित किया? अर्थात् इस पुरुष का मुख क्या था? इसके दो बाहु क्या थे? इसकी दो जाँघें क्या थीं? और इसके दो पैर क्या थे? प्रथम प्रश्न सामान्य प्रश्न है और बाद के प्रश्न ‘मुख क्या था‘ इत्यादि विशेष प्रश्न हैं।
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