Thursday, December 11, 2008

पुरुषसूक्तम्-३

एतावानस्य महिमातो ज्यायांश्च पूरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥३॥

अतीतानागतवर्तमानरुपं जगद्यावदस्ति एतावान्सर्वोऽप्यस्य पुरुषस्य महिमा। स्वकीयसामर्थ्यविशेषः। तु तस्य वास्तवस्वरुपं। वास्तवस्तु पुरुषोऽतो महिम्नोऽपि ज्यायान्। अतिशयेनाधिकः। एतच्चोभयं स्पष्टीक्रियते। अस्य पुरुषस्य विश्वा सर्वाणि भूतानि कालत्रयवर्तीनि प्राणिजातानि पादः। चतुर्थोंऽशः। अस्य पुरुषस्यावशिष्टं त्रिपात्स्वरूपममृतं विनाशरहितं सद्दिवि द्योतनात्मके स्वप्रकाशस्वरूपे व्यवतिष्ठ इति शेषः। यद्यपि सत्यं ज्ञानमनंतं ब्रह्म। तै. . . . .१। इत्याम्नातस्य परब्रह्मण इयत्ताभावात्पादचतुष्टयं निरूपयितुमशक्यं तथापि जगदिदं ब्रह्मस्वरूपापेक्षयाल्पमिति विवक्षितत्वात्पादत्वोपन्यासः।

जितना भी यह अतीत, अनागत एवं वर्तमान जगत है, यह सब इस पुरुष की महिमा ही है। एक विशेष सामर्थ्य मात्र ही है। पुरुष का वास्तविक स्वरूप नहीं है। वस्तुत्व तो पुरुष अपनी इस महिमा से कई बढकर है। तीनों कालों में वर्तमान सभी प्राणी इस पुरुष के मात्र चतुर्थ अंश हैं। इस पुरुष का बचा हुआ तीन-चौथाई अंश विनाशरहित होकर स्वप्रकाशशील रूप में आकाश में अवस्थित है। उपनिषद कहता है कि ‘सत्यं ज्ञानमनंतं ब्रह्म’। अतः उपनिषद के अनुसार भी ब्रह्म के जगतमात्र न होने के कारण इसके बचे हुए तीन-चौथाई अंश का वर्णन नहीं किया जा सकता। किंतु फिर भी यह जगत इस ब्रह्म स्वरूप की अपेक्षा अल्प ही है, यह बताने के लिए पुरुष को अंशों में विभक्त किया गया है।
Comments:
A good one. Please keep writing on spiritualism. Please log on to www.trustmeher.com and www.avatarmeherbabatrust.org
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Chandar
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बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
 
आपका स्वागत और शुभकामनाएं
 
.. आपका हार्दिक स्वागत है मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लायें
बधाई स्वीकार करें
 
हिन्दी चिठ्ठाविश्व में आपका हार्दिक स्वागत है, मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं…
 
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